=आस्था के आलोक में आदरयक्त मंगलकामना

पर्व है पुरूषार्थ का, दीप के दिव्यार्थ क


देहरी पर दीप एक जलता रहे,


अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,


हारेगी हर बार अंधियारे की घोर–कालिमा,


जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण लालिमा,


दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,


कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है,


आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,


प्रार्थना शुभकामना हमारी ले लीजिये


झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना


आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगलकामना